नई दिल्ली. आज नेशनल साइंस डे है. भारतीय भौतिकविद सी.वी. रमण ने आज ही के दिन वर्ष 1928 में विश्व प्रसिद्ध रमण इफेक्ट की खोज की थी.
इसीलिए भारत सरकार हर साल 28 फरवरी को विज्ञान दिवस के रूप में मनाती है. घर में जलने वाले छोटी सी एलईडी से लेकर अंतरिक्ष और चांद की यात्रा करने वाले स्पेसक्राफ्ट तक तकनीक हमारे इर्द-गिर्द रची बसी है. आज के दौर में तो मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप और टीवी ने हमें विज्ञान के बेहद करीब ला दिया है. ऐसे में विज्ञान और इससे जुड़े वैज्ञानिकों की बातें करना लाजिमी भी है.
तो आइए 28 फरवरी को जब पूरा देश नेशनल साइंस डे मना रहा है, हम भारत के उन वैज्ञानिकों की बात करें जिनके आविष्कारों ने दुनिया में नई क्रांति ला दी. जिन्होंने अपनी खोज से दुनिया को नई दिशा दी. ऐसे सात वैज्ञानिकों के बारे में आइए पढ़ते हैं.
सी. वी. रमण
सी.वी. रमण. (फोटो साभारःजीन्यूज.कॉम)
तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के तिरुचिरापल्ली में 7 नवंबर 1888 को जन्मे चंद्रशेकर वेंकट रमण भारत और एशिया के पहले वैज्ञानिक थे जिन्हें विज्ञान के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए 1930 में नोबल पुरस्कार मिला था.
उनका रिसर्च भौतिक विज्ञान में था. उन्होंने बताया था कि प्रकाश जब किसी पारदर्शी वस्तु से गुजरता है तो उस दौरान उसके तरंगदैर्घ्य में बदलाव दिखता है. इसे रमण इफेक्ट या प्रभाव कहा गया. इसी खोज के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. भारत सरकार ने 1954 में सी.वी. रमण को इस महत्वपूर्ण खोज के लिए भारत रत्न देकर सम्मानित किया. सी.वी. रमण ने बाद के दिनों में संगीत के वाद्ययंत्रों में विज्ञान पर भी काम किया.
तबला और मृदंग जैसे भारतीय वाद्ययंत्र से निकलने वाले सुरीले धुन की वैज्ञानिकता के बारे में उन्होंने ही सबसे पहले बताया था. 21 नवंबर 1970 को महान वैज्ञानिक सी.वी. रमण की मृत्यु हो गई.
होमी जहांगीर भाभा
होमी जहांगीर भाभा. (फोटो साभारःजीन्यूज.कॉम)
30 अक्टूबर 1909 को तत्कालीन बॉम्बे (अब मुंबई) में जन्मे होमी जहांगीर भाभा परमाणु ऊर्जा आयोग के पहले चेयरमैन थे.
न्यूक्लियर फिजिक्स में अपना करियर शुरू करने वाले भाभा ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सहयोग से भारत का परमाण्विक कार्यक्रम शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसी कारण उन्हें भारतीय परमाणु कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है. ऐसे समय में जब दुनिया के कई देश परमाणु शक्ति का उपयोग बम बनाने में कर रहे थे, भाभा ने भारत को परमाणु ऊर्जा का उपयोग विकास कार्यों के लिए करने की पहल की थी.
उन्होंने ही देश में परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की दिशा में काम शुरू कराया था. 24 जनवरी 1966 को एअर इंडिया के विमान से यात्रा करते वक्त हुए हादसे में भारत के इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु हो गई.
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया. (फोटो साभारःजीन्यूज.कॉम)
प्रख्यात इंजीनियर और विद्वान सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 को हुआ था.
वे वर्ष 1912 से 1918 तक मैसूर रियासत के दीवान रहे थे. ‘ऑटोमेटिक स्लुइस गेट’ और ‘ब्लॉक इरिगेशन सिस्टम’ जैसे अपने अद्भुत आविष्कारों ने उन्हें देश में ख्याति दिलाई. इन्हीं आविष्कारों के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न का सम्मान दिया. उनके जन्मदिन के अवसर पर भारत में हर साल नेशनल इंजीनियर्स डे मनाया जाता है.
नदी के पानी को छानने के लिए उनके द्वारा किया गया ‘कलेक्टर वेल्स’ का प्रयोग आज भी सराहा जाता है.
एस. चंद्रशेखर
एस. चंद्रशेखर. (फोटो साभारःजीन्यूज.कॉम)
ब्रिटिश भारत के लाहौर में 19 अक्टूबर 1910 को जन्मे भौतिकी के विद्वान एस. चंद्रशेखर का नाम भी भारत के महान वैज्ञानिकों में शामिल है.
चंद्रशेखर महान भौतिकविद सी.वी. रमण के ही परिवार ‘ब्लैक होल’ के गणितीय सिद्धांत को लेकर चंद्रशेखर को वर्ष 1983 का नोबल पुरस्कार दिया गया था. बाद के दिनों में एस. चंद्रशेखर ने अमेरिका की नागरिकता ले ली थी. उनका सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक कार्य तारों से ऊर्जा के विकिरण को लेकर है. 21 अगस्त 1995 को 82 वर्ष की अवस्था में भारत के इस महान वैज्ञानिक का अमेरिका के शिकागो में निधन हो गया.
श्रीनिवास रामानुजम
श्रीनिवास रामानुजम.
(फोटो साभारःजीन्यूज.कॉम)
गणित के क्षेत्र में देश और दुनिया में सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम है श्रीनिवास रामानुजम का. उनका जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु में हुआ था. बिना किसी विशेष अध्ययन और प्रशिक्षण के उनके द्वारा दिए गए गणितीय विश्लेषण, नंबर थ्योरी आज गणित में विशेष महत्व रखते हैं. 13 वर्ष की छोटी अवस्था में ही रामानुजम ने त्रिकोणमिति पर लिखी गई एसएल लोनी की किताब संपूर्ण कर ली थी.
यही नहीं, इसी अवस्था में उन्होंने नए प्रमेय भी बना लिए थे. बाद के दिनों में रामानुजम इंग्लैंड चले गए, लेकिन अपने गिरते स्वास्थ्य और शाकाहारी खाना न मिलने की वजह से उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा. मात्र 32 वर्ष की युवावस्था में ही भारत के इस महान गणितज्ञ की मृत्यु हो गई. उनके जन्मदिवस पर तमिलनाडु सरकार हर साल आईटी दिवस मनाती है.
आचार्य जगदीशचंद्र बोस
आचार्य जगदीशचंद्र बोस.
(फोटो साभारःजीन्यूज.कॉम)
वनस्पतिशास्त्र के महान विद्वान आचार्य जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 को पश्चिम बंगाल के बिक्रमपुर में हुआ था. उन्हें जीवविज्ञान के अलावा भौतिकी और वास्तुशास्त्र का भी महारथी माना जाता है. पौधों पर अध्ययन के क्षेत्र में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है. भारतीय उपमहाद्वीप में एक्सपेरिमेंटल साइंस की आधारशिला रखने वालों में से उन्हें एक माना जाता है.
पौधों में भी भाव या उत्तेजना समझने की क्षमता होती है, यह सबसे पहले आचार्य जेसी बोस ने ही बताया था. इस प्रयोग को समझने के लिए उनके द्वारा बनाया गया क्रेस्कोग्राफ बड़ा महत्वपूर्ण यंत्र माना जाता है. उन्हें बंगाली साइंस फिक्शन का जनक कहा जाता है.
एपीजे अब्दुल कलाम
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम.
(फोटो साभारःजीन्यूज.कॉम)
अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम का नाम देश के महान वैज्ञानिकों में शुमार किया जाता है. 15 अक्टूबर 1931 को जन्मे कलाम को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए जाना जाता है. भारतीय सेना में एक हेलिकॉप्टर को डिजाइन करने के काम से अपना करियर शुरू करने वाले कलाम ने डीआरडीओ और इसरो में भी वर्षों तक अपनी सेवाएं दी.
1969 में उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में भेजा गया जहां उन्होंने देश के सबसे पहले इंडिजीनस सेटेलाइट कार्यक्रम का नेतृत्व किया. इसके तहत 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया. वर्ष 2002 में उन्हें डॉ. कलाम को देश का 11वां राष्ट्रपति चुना गया. उनके सर्वोत्तम कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा.
83 वर्ष की अवस्था में 25 जुलाई 2015 को हृदयाघात के बाद इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु हो गई.
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